Tuesday, October 5, 2021

मानवाधिकार एक्शन फोरम की राष्ट्रीय कार्यकारिणी और कोर टीम के द्वारा देर रात्रि में प्राप्त आदेशानुसार बहादुरगढ़ से लखीमपुर खीरी की ओर प्रस्थान किया ।


मुस्कुराइए! आप लखनऊ में हैं! रविवार को लखीमपुर खीरी में हुए दर्दनाक और भयावह नरसंहार की ख़बर मिलते ही स्तब्ध रह गया। मानवाधिकार एक्शन फोरम की राष्ट्रीय कार्यकारिणी और कोर टीम के द्वारा देर रात्रि में प्राप्त आदेशानुसार बहादुरगढ़ से लखीमपुर खीरी की ओर प्रस्थान किया । सीतापुर पहुँचते ही हमारी गाड़ी को रुकवा दिया गया। तो हमारी टीम वहीं दूर-दराज से पहुंचे और क्षेत्रीय किसानों के मध्य धरना प्रदर्शन में शामिल हुई। साहब की व्यवस्थाएं बड़ी ही चाक-चौबंद थीं! इंटरनेट सेवाओं पर भी प्रतिबंध था। और बाबा जी (मुख्यमंत्री श्री आदित्यनाथ योगी जी) के आदेशानुसार किसी भी प्रकार के धरना-प्रदर्शन और विरोध-प्रदर्शन पर रोक लगाने के लिए सभी उपयुक्त कदम उठाने की पूरी छूट अपने प्रशासनिक अमले को दे दी गयी थी।

अतः पहले धमकी और फिर लाठीचार्ज के बल पर उक्त धरने को समाप्त करने की नाकाम कोशिश की गई। फ़िर दोपहर के लगभग ख़बर मिलती है कि किसानों और सरकार के बीच बातचीत हो गयी है। किसान नेताओं की सभी मांगों को सरकार मानने को तैयार है! तो वहाँ से (सीतापुर-लखीमपुर खीरी के पास) वापसी ही हमारा अगला कदम था। लखनऊ टीम ने फोन कर वापसी के समय लखनऊ कार्यालय पहुँचने और शिष्टाचार भेंट के आग्रह पर काफ़िला लखनऊ की ओर मुड़ चला। मन बड़ा ही व्याकुल था! और उदास भी! यह सोचकर कि आज राजनीति का स्तर कितना गिर गया है!

कि अपने अहम के चक्कर में आंदोलनकारियों का कत्लेआम और नरसंहार! क्या अब किसी को इस लोकतंत्र में किसी को स्वतंत्र रूप से अपनी आवाज़ उठाने का हक़ भी नहीं रहा! उदास मन के साथ मैं लखनऊ की ओर चल तो दिया था। मगर पूरे रास्ते (लखीमपुर खीरी- लखनऊ) में प्रशासनिक चाक चौबंद व्यवस्थाओं को देखकर एक बड़ा ही रोचक प्रसंग याद आ गया-एक राजा ने विभिन्न देशों को जीतने और अपनी लगातार जीत के अहम में अपनी सेना को छूट दे दी। उसी सेना में एक प्रभावशाली सेनापति भी था! जिसका व्यक्तित्व राजा की तरह ही प्रभावशाली था। हालांकि राजा ग़लत नहीं था! और न ही वह सेनापति! मगर उस सेनापति ने यह ध्यान नहीं दिया कि जिस गढ़ को जीतकर वह आगे बढ़ता, उसके सैनिक वहाँ के लोगों पर अत्याचार करते! और सेनापति अपनी सेना के इस कारनामे से जानकर भी अनजान बना रहा

। क्योंकि इसी सेना के बल पर ही तो वह सेनापति प्रभावशाली हो सका था और राजा की नज़र में था। आलम यह हुआ कि एक दिन अपने ही राज्य में राजा और सेनापति और उक्त सेना को प्रजा के कोप-भाजन का शिकार बनना पड़ा! उसके ही राज्य की प्रजा ने उक्त सेना को सेनापति और राजा सहित दौड़ा-दौड़ाकर पीटा। न राजा की नीति ग़लत थीं, न सेनापति की! मगर अपने कुछ सैनिकों की गंदी हरकतों का परिणाम उनको भुगतना पड़ा। वही हाल मुझे आज इस प्रदेश (उत्तर प्रदेश) के सेनापति मुखिया योगी आदित्यनाथ का लग रहा था। अचानक से इस किस्से की याद और योगी आदित्यनाथ की हालत उसी सेनापति सी प्रतीत होती सोचते हुए, मेरे चेहरे पर एक मुस्कान-सी आ गयी। और मन को हल्की-सी राहत मिली कि आज भी अगर मंत्री के उस बेटे को उसके कुकर्म की सज़ा नहीं मिली तो एक दिन अवश्य ही इस राज्य की जनता भी इस सेनापति का मुहँ अवश्य ही काला करेगी। और उस दिन यह लखनऊ की जनता कुछ इस प्रकार से योगी जी की ओर देख रही होगी, जैसे जनता की निगाहें उनसे कह रही हों कि- मुस्कुराइए योगी जी! आप लखनऊ में हैं।

@Ngo Darpan News

8010884848

7599250450

No comments:

Post a Comment