Wednesday, June 3, 2020

सृजन फाउंडेशन के 28 दिवसीय माहवारी स्वच्छता जागरूकता अभियान के 24वें दिन महिलाओं ने पीरियड्स और पूजा के संबंध में अपने विचार रखे

पीरियड्स में पूजा न करने देना एक सामान्य प्रक्रिया है। एक ओर हम लोग माँ कामाख्या की माहवारी की पूजा करते हैं और दूसरी ओर घर में महिलाओं को पूजा नहीं करने देते। यह नियम तब बने थे जब नहाने और पीने का पानी अलग अलग नहीं होता था। एक ही तालाब से नहाना और पानी पीना होता था। इन्फेक्शन न हो इसलिए महिलाओं को पीरियड्स के दिनों में नहाने से रोक दिया जाता था। जब वो नहाई नहीं होती थीं तो पूजा भी नहीं कर पाती थीं। समय बदला और पानी की व्यवस्था अलग अलग हो गयी लेकिन हम लोग अपने विचारों में परिवर्तन नहीं ला पाए। जिस माहवारी को भगवान ने ही दिया और जो सृष्टि चलाने का मुख्य कारण है उससे भगवान नाराज़ कैसे हो सकता है?

संगीता पाल - यह लाल रक्त कोई पाप नहीं, यह लाल रक्त कोई अभिशाप नहीं, यह देन है भगवान की, इससे बड़ा कोई वरदान नहीं। मासिक धर्म है कोई शर्म नहीं, क्यों मंदिर में प्रवेश नहीं, जब उनका कोई दोष नहीं।

नीरजा द्विवेदी ने एक पेंटिंग के माध्यम से इस पाखंड के लिए संदेश दिया- मंदिर के बाहर वो मौन खड़ी निःशब्द निःशक्त, तेरी रचना नारी को क्यों बांधता पाखंड है।

पूजा भारती उन लड़कियों में से हैं जिन्होंने इस तथ्य को समझा और पीरियड्स में भी पूजा करती हैं और उन्होंने अपनी ड्राइंग के माध्यम से यही प्रदर्शित किया कि हाँ मैं पीरियड्स में पूजा करती हूँ, जब भगवान ने ही इसे दिया तो हम पूजा क्यों न करें?

माँ कामाख्या की चूनर भी लाल
उनके माथे की बिंदिया भी लाल
ये शक्तिपीठ बन गया विशाल
भक़्ति का रंग भी होता लाल
इस दर पर भी आता है रक्त
दर्शन करने सब आते भक्त
उस माँ की सब पूजा करें
नारी का क्यों अपमान करें
इस रक्त को सब अभिव्यक्त करो
नारी को न प्रतिबद्ध करो
तुम ये न करो तुम वो न करो
क्यों ऐसी बात को करते हो
एक नारी का अपमान करके
उस माँ की पूजा करते हो
जिसने हमको ये बतलाया
क्यों उसका हमे अभिमान नही
माहवारी का आज भी इस युग में
कोई करता अभी सम्मान नही

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